बुधवार, 30 मार्च 2016

पहेली अनलिमिटेड

आप समझ लीजिए, यूंही समझ लीजिए, पागलख़ाने में हम ऐन-ग़ैन बातें करते ही रहते हैं इसलिए समझ लीजिए कि एक कोई देश है, नाम कुछ समझिए कि है तनढोंगूमनढोंगू देश। यूं तो देशों में राजा लोग आते-जाते रहते ही हैं और विपक्ष उनका विरोध भी करता ही है ; इसबार राजा आया है, नाम रख लीजिए फ़ासीलाल। क़ाबिले-ज़िक़्र बात यह मानिए कि विपक्षी बुद्विजीवी, पत्रकार, यह कार, वह कार पहले दिन से राजा को ग़ालियां दे रहे हैं कि राजा तानाशाह है, ज़ालिम है, क्रूर है, ग़ैस-चैम्बर में फिंकवा सकता है, जेल में डलवा देगा, यह कर देगा, वह कर दिया.....

अब पहेली यह है कि राजा ने ज़ुल्म-वुल्म जो किया होगा, किया होगा मगर ये जो लोग तीख़ी आलोचना कर रहे हैं, भद्दी से भद्दी भाषा में आलोचना कर रहे हैं, उनका तो कुछ बिगड़ ही नहीं रहा हैगा! न तो किसीको जेल में डाला गया है, न ही किसीको देशनिकाला दिया गया हैगा! ग़ैसचैम्बर में डालना तो दूर, इन्हें तो कभी ख़रोंच भी नहीं आती हैगी। यह भी छोड़िए, टीवी से लेकर फ़िल्मों तक, पुरस्कारों से लेकर सम्मानों तक इन्हींके थोबड़े छाए हुए हैंगे। अदालतें तक इन्हींके पक्ष में निर्णय दे रही हैंगी। यह किस टाइप का फ़ासीवाद/फ़ासीलाल हैंगा, भैय्या !?

दोस्तों/मित्रों/साथिओं/सखियों/सखाओ, इस पहेली के हलस्वरुप/फलस्वरुप तीन-चार संभावनएं समझ में आती हैंगी-

1. राजा फ़ासीलाल को अपने-पराए, दोस्त-दुश्मन, अपनी विचारधारा-उनकी विचारधारा का फ़र्क़ नहीं मालूम हैगा !

2. शासन दरअसल ग़ाली देनेवालों का हैगा, राजा फ़ासीलाल को उन्हींने ग़ाली खाने हेतु रखा हैगा।

3. राजा और आलोचकों/गालोचकों की मिली-भगत हैगी, ये उनका टाइमपास का पुराना तरीक़ा हैगा ?

4. राजा और आलोचक/ग़ालोचक (ग़ाल+उचक्का) एक ही शाख़/शाखा के अलग-अलग फूल हैंगे, इनका असली काम मिल-जुलकर स्वतंत्र/निष्पक्ष/ईमानदार लोगों को ढूंढ निकालना और उन्हें उनके किए का सबक सिखाना हैगा ?

5. और कोई संभावना हो तो वो भी बता डालो, पागलों! अब बचा भी क्या है जानने को!

-संजय ग्रोवर
30-03-2016

बुधवार, 23 मार्च 2016

हश्र

कविता

हम
विज्ञापन कला के
सर्वाधिक प्रभावशाली दौर से
गुज़र रहे हैं

भगतसिंह, गांधी और अंबेडकर जैसे नाम
विभिन्न राजनैतिक दलों और संस्थाओं के लिए
मरणोपरांत 
मॉडलिंग कर रहे हैं.

-संजय ग्रोवर

24-03-2016
(एक पुरानी कविता थोड़े बदलाव के साथ)

शनिवार, 5 मार्च 2016

ब्लॉग आर्काइव