रविवार, 3 मई 2015

तय करो किधर के बाबा हो

अर्धव्यंग्य

आदमी अपना कोई पक्ष-विपक्ष तय कर ले तो बहुत से झंझटों से मुक्त हो जाता है-जैसे सोच-विचार, तार्किकता, जीवनमूल्य, इंसानियत, संवेदना...

अगर आप पितावादी हैं तो पिता आपसे कहेंगे कि बेटा, ज़रा अपनी मम्मी का सर काट लाओ, और उनकी बात पूरी होने से पहले ही आप मां का सिर प्लेट में सलाद की तरह सजा लाएंगे।

मां का भी छोड़िए, अगर आप गुरुवादी हैं, श्रद्धावादी हैं, आदरवादी हैं तो गुरु के कहने पर अपना ही अंगूठा ऐसे काट लेंगे जैसे आइसक्रीम के स्लाइस बना रहे हों।

वैसे आमतौर पर जो लोग पक्षवादी और प्रतिबद्धतावादी बने घूमते हैं, ध्यान से देखिए तो पाएंगे कि वे अपना पक्ष भी ठीक से तय नहीं कर पाए होते। ये एक ही सांस में न्याय की भी बात करते हैं और दोस्ती निबाहने की भी। ये एक ही बार में ईमानदारी को भी साधना चाहते हैं और दुनियादारी को भी। इन अजूबों के क़रतब इन्हींके जैसे लोगों को भाते भी बहुत हैं। मगर सवाल यह है कि अगर आपका दोस्त ही बेईमान है तो या तो आप दोस्त के साथ खड़े हो सकते हैं या न्याय के। अगर आपकी ख़ुदकी ही कोई दिलचस्पी ईमानदारी में नहीं है तो आप अपने किसी ईमानदार रिश्तेदार का साथ पूरे मन से नहीं दे सकते। पहले आप ख़ुद तो तय करलें कि आप न्याय के पक्ष में हैं या रिश्तेदारी के, ईमानदारी को प्राथमिकता देंगे कि दुनियादारी को! जब आप ख़ुद तय कर लेंगे तो दूसरों से भी तय करवा लीजिएगा।

वरना पक्ष तो उन लोगों का भी तय था जिन्होंने सामूहिक बलात्कार की शिकार, गांव-भर में बहिष्कृत भंवरीदेवी नामक स्त्री से कहा कि तुम्हारे आरोपी बलात्कार कर ही नहीं सकते क्योंकि वे तो ऊंची(!) जाति के हैं। भैया कहीं इसी तरह के कट्टर पक्षधर न बन जाना। कहीं बिना दाढ़ी और बिना चोगेवाले बाबा न बन जाना जो सूट-बूट और टाई लगाकर कथित पिछड़ी जातियों को न्याय के नाम पर ‘श्राप’नुमां चीज़ें ‘प्रोवाइड’ कराते रहते हैं।

यूं भी आजकल पैकिंग की कला इतनी इम्प्रूव हो गई है कि पूछिए ही मत। पैकिंग प्रगतिशीलता की होती है, निकलता अंदर से बाबा है। पैकिंग एडुकेटेड की रहती है, निकलता फिर भी बाबा है। पैकिंग सूटेड-बूटेड रहती है, बरामद फिर बाबा होता है। पैकिंग डिबेटर की चढ़ी है, निकल रहा है फिर-फिर बाबा। पैकिंग लैक्चरर की है, प्रोफ़ेसर की है, एंकर की है, इंजीनियर की है, डॉक्टर की है, पीसीएस की है, आईएएस की है...और निकल रहें हैं बाबा ही बाबा।

ऐसे में तय क्या करें? यही कि अपने अंदरवाले बाबा पर पैकिंग कौन-से वाले पक्ष की चढ़ानी है?

-संजय ग्रोवर
03-05-2015


शनिवार, 2 मई 2015

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