गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मैसेज वाला देश

लघु व्यंग्य

वह भी एक देश था, सचमुच का देश था।

किसीको सज़ा होनेवाली थी। पत्रकार चर्चा कर रहे थे।

कोई बोला,‘‘उनमें अहंकार बहुत आ गया था, लोगों से उल्टा-सीधा बोलने लगे थे।’’

दर्शकों में मैसेज गया कि अदालतें पत्रकारों के बदले लेने के लिए और अहंकारी को विनम्रता सिखाने के लिए होती हैं।

कोई और पत्रकार बोला,‘‘उनका घर-परिवार-वंश कैसे चलेगा !? उनका लड़का नंबर एक लायक है, लड़की नंबर दो ऐसी है, चाचा बहुत सामाजिक हैं, मामा जुझारु राजनेता हैं...........

दर्शकों में मैसेज गया कि चैनल भविष्य वक्ता ही नहीं बिठाते बल्कि दूसरों के घर-परिवार-दल आदि भी चलाते हैं। सज़ा होगी कि नहीं होगी, लगता है यह भी उन्हें कन्फ़र्म रहता है।

एक और पत्रकार उछला,‘‘सत्ता-प्रमुख उनके विरोध में थे जबकि सत्ता-मुख को उनसे हमदर्दी है।’’

मैसेज निकला कि अदालतें मुख-प्रमुख की मोहताज होतीं हैं।

एक पत्रकार बोला कि जब ‘उन्हें पकड़ा गया तो उनके चेहरे पर हवाईयां उड़ रहीं थीं।’

मैसेज गया कि जिसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रहीं हों, पक्का वही अपराधी है। अगर कोई अकेला आदमी गुंडों में घिर जाए तो हवाईयां अकेले के चेहरे पर ही उड़ेंगीं ; ज़ाहिर है वह आदमी ग़लत है। अगर कोई लड़की बलात्कारियों में घिर जाए तो ज़ाहिर है कि हवाईयां लड़की के चेहरे पर उड़ेंगी। तो...

कुल मिलाकर एक मैसेज गया कि ईमानदारी-बेईमानी तो आती-जाती रहतीं हैं, बड़े(!) लोगों से एडजस्ट नहीं करोगे तो फंसोगे हर हाल में तुम ही।

-संजय ग्रोवर

03-10-2013


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