सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

हाय रे हाय! भंवरा बेईमान

लघुकथा

मक्खियों की मुक्ति के लिए कई संगठन बनाए गए थे जिनमें से ज़्यादातर की प्रमुख तितलियां थीं। मक्खियां अकसर तितलियों से प्रभावित थीं। उनके बड़े-बड़े, रंगीन और ख़ूबसूरत पर देखकर उनमें भी यह इच्छा पैदा हो जाना स्वाभाविक था कि वे भी किसी दिन उन्हीं की तरह उड़ान भरें। हांलांकि तितलियां कई बार क़िताबों में सूखी हुई बरामद होतीं थीं फिर भी उनमें अपने तितली होने को लेकर एक गर्व का भाव बराबर बना रहता था। 

और तितलियां जो थीं, भंवरों से प्रभावित थीं। हट्टे-कट्टे बलिष्ठ भंवरे। चिकने-चुपड़े। चमकते हुए बालविहीन सरों वाले भंवरें। जाकर किसी भी फूल पर बैठ जाते और उसे चूस डालते। कितना साहसी है रे! आवारा कहीं का! तितलियां बस मर-मर जातीं। मक्खियों का संचालन कैसे किया जाए कि इनके दिमाग़ एकदम से चढ़ न जाएं, इस बारे में निर्देश वे अकसर मक्खीवादी और चींटीवादी भंवरों से ही लिया करतीं।

वे जानतीं थीं कि अंदर से वे सब भंवरे भी दरअसल तितलीवादी हैं।

इस तरह मक्खियों, चींटियों और तितलियों की मुक्ति की लड़ाई पर भंवरों ने कुशलतापूर्वक होल्ड रखा हुआ था।


-संजय ग्रोवर

22-10-2013

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

न्यू कबीर एण्ड संस्

व्यंग्य


यह कल्पना ही दिलचस्प है कि कबीरदास एक राजनीतिक दल के घोषित तौर पर सदस्य हैं। तीन दलों में उनका अच्छा आना-जाना, उठना-बैठना और खाना-पीना है, पांचवे की भी समय-समय पर तारीफ़ कर देते हैं। कमाल एक उद्योगपति के अख़बार में संपादक है,दो-चार लाख़ रु महीने के कमाल दिखा रहा है, लोई अपनी मम्मी के साथ दो एन. जी. ओ. चला रही है। सारा परिवार सारे चैनलों पर बुलाया जाता है, हर जगह छपता-छुपता है।

जो कोई भी उनसे तर्क करता है उसे वे तर्कपूर्ण जवाब देने के बजाय वामपंथी, संघी, हिंदू, मुस्लिम, कांग्रेसी, भाजपाई, सपाई-बसपाई वगैरह सिद्ध करने में जुट जाते हैं। या उससे उसकी पढ़ाई के सर्टीफ़िकेट मांगने लगते हैं। साथ चल रहे अपने असिस्टेंट से अपनी डिग्रियों की फ़ाइल दिखाने को कहते हैं।

कबीरदास पुरस्कार के लिए लॉबीइंग कर रहे हैं।

कबीरदास फ़ेसबुक पर स्टेटस डालने के लिए पार्टी-लाइन, एजेण्डा और मैनीफ़ैस्टो का अध्यन कर रहे हैं।

कबीरदास पत्थरवादियों में शामिल होकर एक अकेले पड़ गए आदमी पर पत्थर मार रहे हैं।

कबीरदास तर्क के नाम पर अफ़वाहें फैला रहे हैं।

कबीरदास ने अपना संगठन बना लिया है और विपरीत विचारों वाले लोगों को ख़त्म करने के लिए उनके आस-पास अपने आदमी प्लांट कर रहे हैं।

कबीरदास अपने वातानुकूलित ऑफ़िस में लंगोटी पहने, लकुटिया संभाले सब कुछ छोड़कर चलने को (फ़िर दोगुनी-चार गुनी ‘उपलब्धियों’ के साथ लौटने को) तैयार बैठे हैं। पीछे शोकेस में विभिन्न अवार्ड और ट्राफ़ियां बिलकुल ऐसे ही सजी हैं जैसे उस संस्कृति के लोगों के यहां सजी हैं जिनके वे कट्टर विरोधी हैं।




और जिसके पास इनमें से कुछ नहीं, वह उनके वातानुकूलित ऑफ़िस में घुसने से डर रहा है। 



वैसे, ऐसे कबीरदास से मिलकर वह करेगा भी क्या ?

-संजय ग्रोवर


05-10-2013

 

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

करता भी क्या !

लघुकथा


लोग उसकी वजह से मुझसे नफ़रत करते थे।

और वह उन्हीं लोगों के डर से मुझसे नफ़रत करता था।

-
संजय ग्रोवर

13-10-2013

 

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

उनकी तरह सफ़ल होने की चाहत में


जिनके खि़लाफ़ लड़ रहा था
उन्हीं के समर्थन से लड़ने लगा

लड़ते-लड़ते
नाचने लगा

थका तो रुकना चाहा
मगर डोरियां तो उन्हीं के हाथ में दे दी थीं

अब नाचते रहने के सिवा
कोई चारा न था


-संजय ग्रोवर
10-10-2013

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मैसेज वाला देश

लघु व्यंग्य

वह भी एक देश था, सचमुच का देश था।

किसीको सज़ा होनेवाली थी। पत्रकार चर्चा कर रहे थे।

कोई बोला,‘‘उनमें अहंकार बहुत आ गया था, लोगों से उल्टा-सीधा बोलने लगे थे।’’

दर्शकों में मैसेज गया कि अदालतें पत्रकारों के बदले लेने के लिए और अहंकारी को विनम्रता सिखाने के लिए होती हैं।

कोई और पत्रकार बोला,‘‘उनका घर-परिवार-वंश कैसे चलेगा !? उनका लड़का नंबर एक लायक है, लड़की नंबर दो ऐसी है, चाचा बहुत सामाजिक हैं, मामा जुझारु राजनेता हैं...........

दर्शकों में मैसेज गया कि चैनल भविष्य वक्ता ही नहीं बिठाते बल्कि दूसरों के घर-परिवार-दल आदि भी चलाते हैं। सज़ा होगी कि नहीं होगी, लगता है यह भी उन्हें कन्फ़र्म रहता है।

एक और पत्रकार उछला,‘‘सत्ता-प्रमुख उनके विरोध में थे जबकि सत्ता-मुख को उनसे हमदर्दी है।’’

मैसेज निकला कि अदालतें मुख-प्रमुख की मोहताज होतीं हैं।

एक पत्रकार बोला कि जब ‘उन्हें पकड़ा गया तो उनके चेहरे पर हवाईयां उड़ रहीं थीं।’

मैसेज गया कि जिसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रहीं हों, पक्का वही अपराधी है। अगर कोई अकेला आदमी गुंडों में घिर जाए तो हवाईयां अकेले के चेहरे पर ही उड़ेंगीं ; ज़ाहिर है वह आदमी ग़लत है। अगर कोई लड़की बलात्कारियों में घिर जाए तो ज़ाहिर है कि हवाईयां लड़की के चेहरे पर उड़ेंगी। तो...

कुल मिलाकर एक मैसेज गया कि ईमानदारी-बेईमानी तो आती-जाती रहतीं हैं, बड़े(!) लोगों से एडजस्ट नहीं करोगे तो फंसोगे हर हाल में तुम ही।

-संजय ग्रोवर

03-10-2013


ब्लॉग आर्काइव